मंगलवार, 20 जून 2017

!! मेरा पेड़ पहले की तरह गाता नहीं !!


मेरी खिड़की से दिखते दो पौधे
पता नहीं मित्र हैं वे या रिश्तेदार
पर संग-संग हँसते बतियाते देख
दिख जाता उनका गहरा प्यार।

कभी पत्ते, कभी डालियाँ तो
कभी हवाओं से ख़ुशबू बाँटते
मैं देखा करती अक्सर उनको
बारिश की बूँदों के संग नाचते।

बसंत, पतझड़, सावन सब जीते
वे भी मेरे साथ-साथ बड़े हो रहे थे
मज़बूत तना, घनी पत्तियों के संग
वे छोटे पौधे से अब पेड़ हो रहे थे।

गर्मी, बारिश में गरीबों  की छतरी
तो शाम बच्चों का झूला बन जाते
दोपहर में गायें सुस्ताती उनके तले
शाम में चाँद को पत्तों से निकालते।

उनमें से एक पेड़ था आम का और
दूसरा था वो,फल नहीं आते जिसमें
फल के अलावा छाया, शीतलता
सौंदर्य सब कुछ बराबर था उसमें।

गर्मी की छुट्टियों में नानी घर गयी
हम वहाँ आम खाने जाया करते थे
वहाँ के पेड़ भी बहुत प्यारे थे मगर
मुझे अपने ज़्यादा अच्छे लगते थे।


जब भी खिड़कियों के पास बैठती
मुझे अपने उन पेड़ों की याद आती
तब ममेरे भाई-बहनों को बिठाकर
उन्हें अपने पेड़ के बारे में बताती।

छुट्टियों के बाद जब वापस आयी
रात से सुबह के इंतज़ार में लग गयी
थकी थी बहुत पर अपने पेड़ों को
देखने की ललक में कहाँ सो पायी।

पौ फटते ही दौड़ी खिड़की पर मैं
ये क्या?वहाँ एक ही पेड़ खड़ा था
पास ही कुछ शेष था कटा ठूँठा-सा
लगा घायल-सा जैसे कोई पड़ा था।

गयी आँगन में दादी के पास पूछने
दादी एक पेड़ वहाँ से गया कहाँ?
पता चला उसे काट दिया है सबने
क्योंकि फल नहीं लगते थे वहाँ।

कुछ टूटा अंदर, कुछ छूटा बाहर
चुपचाप गयी मैं उन पेड़ों के पास
जैसे घर का कोई चला गया हो
वैसे ही आम का पेड़ था उदास।

लिए एकाकी मन, सूना-सा हृदय
खड़ा था मित्र के कटे धर के साथ
याद आया वो दृश्य जब बग़ल के
दादा के हाथ था मृत दादी का हाथ।

कटे तने से कुछ तरल-सा टपका था
शायद ये पेड़ों का लहू होता होगा
आम का पेड़ इतना व्यथित था कि
आँखें, आँसू मिले तो अभी रो देगा।

लिपटना चाहता था मित्र से एक़बार
पर इंसान तो मित्र का धर ले गए थे
भुलाना चाहता था इसे हादसा समझ
पर कटा जड़ उसके सामने छोड़ गए थे।

हर दिन देखना, हरदिन ही तड़पना
हाय!मैं रूक न पायी वहाँ ज़्यादा देर
पर घूम रहा था विचारों में अनवरत
एक कटा और एक बचा खड़ा पेड़।

खिड़की से अकेला पेड़ लगता जैसे
दादाजी लगते दादी के जाने के बाद
एक चेहरा गढ़ती मन में उसकी तो
दिखता बस अकेलापन और विषाद।

शाम को बच्चे लटक रहे थे उसपर
उसने एक़बार भी उन्हें हटाया नहीं
अपने फल, शीतलता, छाया को
उनसे कभी लोगों से छिपाया नहीं।

अब भी मीठे आम ही देता है वो
मन में किसी के लिए भी बैर नहीं
मित्र के हंता को भी फल देता है
उसके तो सब अपने कोई ग़ैर नहीं।

हाँ,पर बारिश में अब बस भीगता है
पहले की तरह मगन हो नाचता नही
हवाओं के संग पत्तियाँ हिलती भर हैं
मेरा पेड़ पहले की तरह गाता नहीं।

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