शुक्रवार, 13 अक्तूबर 2017

!! ओस की बूँदें !!


रात में बनती है
सँवरतीं है
सुबह तक तो
पूरी तरुणाइ में होती है।

हरे-हरे घास के ऊपर
चाँदनी-सी चमकती
इतनी सुंदर कि जैसे
मृग की आँखें हो छलकती।

अकेली नहीं संग इसके
सखियाँ होती इसकी सारी
हवा कि संग मचलती
ये लगती मोती-सी प्यारी।

पर इनकी उमर है छोटी
एक छूअन एक ठोकर भर होती है
सूरज की रोशनी तो
एकबार में ही खत्म कर देती हैं।

लेकिन जब तक रहती चमकती
सुंदरता बिखेरती
भविष्य की चिंता से मुक्त
अपने हर पल को जीती।

ये ओस की बूँदें हैं जो
हर रात बनती सुबह मिट जाती है
हमारे आने-जाने की बारी भी
कुछ ऐसे ही तो आती है।

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